Shatpath Ke Das path Vol- 2
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अथ सप्तमाध्याये तृतीयं ब्राह्मणम् प्रग्नीषोमीय पशुयाग
गत तीन ब्राह्मणों में ज्ञान प्रदाता यूप का चयन तथा उसके प्रतिष्ठापन का साङ्गोपाङ्ग वर्णन करके अब प्रागे महर्षियाज्ञवल्क्य पशु के सञ्ज्ञपन तथा उसको देवों के समर्पण करने का विज्ञान प्रकाशित कर रहे हैं । यह सञ्ज्ञपनीय पशु अग्नि तथा सोम इन दो देवताओं से प्रोतप्रोत या इन दोनों देवताओं के लिये समर्पित होने से अग्नीषोमीय कहलाता है । अतः एव इसी पशुयाग प्रकरण में या जुषी श्रुति का विनियोग है-
अग्नीषोमाभ्यां जुष्टं नियुनज्मि ।’ इस यजु का व्याख्यान करते हुये महर्षि याज्ञवल्क्य लिखते तद् यथैवादो देवतायै हविगृहन्नादिशति एवमेवैतद् देवताभ्यामादिशति ।
अर्थात् जैसे देवता के लिये हवि का ग्रहण करते हुये कहा जाता है वैसे ही यहाँ देवताओं के लिये कहता है । लगता है ‘जुटा’ यह शब्द ‘जुष्ट’ का ही अपभ्रंश हुआ है। अतः कहा जा सकता है यह पशु अग्नि सोम देवता के लिये जुटा हुआ होता है । तात्पर्य यह है कि इस पशु ने अग्नि तथा सोम को आत्मगत किया हुआ है ।
वैदिक वाङमय में अग्नि विशुद्ध ज्ञान का देवता है जो व्यक्ति के लिये प्रागे बढ़ने का मार्ग तैयार करता है। तथा सोम ज्ञान की वह धारा है जिससे व्यक्ति भागे बढ़ने का, कर्म करने का pay
१. यजु० ६-९
२. मा० श० ३-७-४-३
३. अग्निर्वे पथः कर्त्ता । स यस्मादेव यजमानो यज्ञपथादेति 3 तमेनमग्निः पन्थानमापादयति । – मा० श० ३-७-३
Weight | 500 kg |
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