Sankhya Darshan Arya Muni
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महर्षि कपिल मुनि प्रणीत सांख्यदर्शन प्रति प्राचीन शास्त्र है। प्रन्य दर्शनों की भांति यह भी त्रैतवाद का पोषक है। मुख्यत माख्यदर्शन में जड़ प्रकृति को जगत् का मूल उपादान कारण माना गया है। ईश्वर को इस जगत् का अधिष्ठाता प्रधान निमित्तकारण और जोव को सामान्य निमित्तकारण माना है। पुराकाल में इस दर्शन पर अनेक भाष्य और टीकायें विद्यमान थीं तथा यह शास्त्र प्रति प्रसिद्ध था ऐसा भारतीय प्राचीन संस्कृत वाङ्मय से परिलक्षित होता है। लगभग तीन सहस्र वर्ष पूर्व कुछ ऐसे सांख्याचार्य हुये जिन्होंने प्रज्ञानवश महर्षि कपिलाचार्य को निरीश्वरवादी = नास्तिक ठहरा दिया। इस प्रसत्य का प्रचार अनेक शताब्दियों तक रहा, प्रभाव अभी तक भी है कुछेक अंग्रेज विद्वानों ने तो कपिल मुनि की सत्ता तक को अस्वीकार कर दिया और सांख्यदर्शदन को महर्षि कपिल के नाम से किसी अन्य विद्वान का रचा हुआ बताने का भी दुस्साहस कर दिखाया | किन्तु इस युग के नव निर्माता और ज्ञान के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सांख्यदर्शन के अन्तः साक्ष्य से ही इस भ्रामक प्रचार का प्रबल खण्डन करके सभी को वास्तविकता से परिचित करा दिया |
यद्यपि महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सांख्यशास्त्र पर, भागुरि मुनिकृत भाष्य वृत्ति सहित पढ़ने पढ़ाने का आदेश दिया है, किन्तु दौर्भाग्य की बात है कि विदेशी आक्रान्ताओं ने भारतीय साहित्य को सैकड़ों वर्षों तक नष्ट करने में घोर पुरुषार्थ किया है इसी कारण ऐसे ग्रन्थ रत्न मिलने भाज दुर्लभ हो गये हैं। विद्याप्रमी, अन्वेषणशील और पुरुषार्थी विद्वानों को चाहिये कि ऋषिदयानन्द द्वारा निर्दिष्ट अनुपलब्ध दर्शन भाष्यों का अन्वेषण करके जनता का उपकार करें ।
इन्हीं महर्षि दयानन्द की दया से आर्य समाज में भी उच्च कोटि के अनेक दार्शनिक विद्वान् उत्पन्न हुये हैं, जिनमें महामहोपाध्याय पण्डित श्रार्य्यमुनि जी, स्वामी दर्शनानन्द जो श्री हरिप्रसाद वैदिक मुनि, स्वामी आत्मानन्द जी सरस्वती, पं० उदयवीरजी प्राचार्य दर्शन केसरी प्रादि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। पं० आर्यमुनि जी ने अपने जीवन काल में सभी दर्शनों का भाष्य करके प्रकाशित करवाया |
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