PARASKARGRIHSUTRAM पारस्कर गृह सूत्रम्
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शुक्लयजुर्वेद से सम्बन्धित यह गृह्यसूत्र तीन काण्डों में विभक्त है। प्रथम काण्ड में उन्नीस, द्वितीय काण्ड में सत्रह और तृतीय काण्ड में सोलह कण्डिकाएँ हैं। इस प्रकार कुल ५१ कण्डिकाएँ हैं।
‘काण्ड’ शब्द अध्याय के लिए पर्यायतः प्रयुक्त हैं। चुरादिगणीय भेदनार्थक ‘कडि’ धातु से कण्डिका शब्द बना है। जहाँ प्रकरणों का परस्पर भेद दिखलाया जाय उसे ‘कण्डिका’ कहते हैं।
प्रथम काण्ड की प्रथम कण्डिका कुशकण्डिका कही जाती है। इसमें यज्ञस्थल का शोधन, होम की आवश्यक सामग्री एवं होम का विधान है। द्वितीय कण्डिका में आवसध्याधान की विधि बतलायी गयी है । तृतीय कण्डिका से आरम्भ करके आठवीं कण्डिका तक मधुपर्क से लेकर विवाह का काल और विवाहविधि वर्णित हैं। नवम कण्डिका में नित्य होम का विधान है। दसवीं कण्डिका में नैमित्तिक कर्म वर्णित हैं । ग्यारहवीं कण्डिका में चतुर्थीकर्म, बारहवीं कण्डिका में पक्षादिकर्म और गर्भाधान का वर्णन है। तेरहवीं कण्डिका में गर्भधारण की औषधि बतलायी गयी है। चौदहवीं पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं कण्डिकाओं में क्रमशः पुंसवन, सीमन्तोन्नयन और जातकर्म वर्णित हैं। सत्रहवीं कण्डिका में नामकरण और निष्क्रमण तथा अट्ठारहवीं कण्डिका में प्रवास से आये हुए व्यक्ति के लिए नियमों का उल्लेख है । इस काण्ड की अन्तिम उन्नीसवीं कण्डिका में अन्नप्राशन-विधि वर्णित है। “
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