The only center for rare books & Free shipping for orders over ₹501

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop

The only center for rare books & Free shipping for orders over ₹501

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop

Niruktam निरुक्तम्

750.00

वेद ऋषियों की आप्तावस्था की वाणी हैं। उसमें ऋग्वेद विश्ववाङ्मय के इतिहास में सर्वप्राचीन ग्रन्थ है। वेदमन्त्रों के अर्थनिर्धारण की परम्परा ब्राह्मणग्रन्थों के रचना काल से ही प्रारम्भ हो गयी थी । मन्त्रों के विनियोग और प्रमुख पदों के निर्वचन द्वारा उनके अर्थनिर्धारण की प्रक्रिया ब्राह्मणग्रन्थों में स्थल-स्थल पर दृष्टिगोचर होती है। जैसे-‘यद् अवृणोत् तद् वृत्रस्य वृत्रत्वम् इति विज्ञायते’ ‘यदवर्धत तद् वृत्रस्य वृत्रत्वम् इति विज्ञायते’ इत्यादि । इस प्रकार ब्राह्मणग्रन्थों के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि ब्राह्मणकाल में ही पदों के निर्वचन द्वारा उनके अर्थनिर्धारण का कार्य प्रारम्भ हो गया था। परवर्ती काल में मन्त्रों के अर्थनिर्धारण के लिए उनके कठिन पदों के कोश के रूप में निघण्टु की रचना की गयी। तत्पश्चात् निघण्टु के पदों के निर्वचनपूर्वक अर्थनिर्धारण के लिए उनके व्याख्यान-स्वरूप निरुक्तग्रन्थ का प्रणयन प्रारम्भ हुआ।

यास्क का निरुक्त इस विषय का आदि ग्रन्थ नहीं है। यास्क ने अपने निरुक्त में अपने से पूर्ववर्ती बारह निरुक्तकारों और उनके मतों का उल्लेख करके उनका समर्थन अथवा प्रत्यावलोचन के साथ अपने मत का स्थापन किया है। पूर्ववर्ती ग्रन्थ की अपेक्षा तद्विषयक परवर्ती प्रन्य का समृद्ध और परिपुष्ट होना स्वाभाविक है। यास्क के निरुक्त के विषय में भी यह सिद्धान्त पूर्णत: लागू हुआ है । यास्क का निरुक्त अन्य निरुक्तकारों के निरुक्तों से परवर्ती होने के कारण उनकी अपेक्षा अधिक परिपुष्ट, गम्भीर तथा गूढ़ है । सम्भवतः इसी कारण पूर्ववर्ती निरुक्तकारों के निरुक्त उपेक्षित होकर कालकवलित हो गये अतः आज उपलब्ध नहीं हैं ।

Calculate shipping price

Please fill in the fields below with the shipping destination details in order to calculate the shipping cost.

Weight 1000 kg

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Niruktam निरुक्तम्”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop