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Kya Hindu mit jaenge

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आक्रामक आचरण से मिटते हिन्दू समाज को सचेत करने हेतु लिखे गए हैं। धर्म को सामान्यतः रिलीजन या मजहब का पर्यायवाची शब्द समझ लिया जाता है, जो सही नहीं है। धर्म, अनेक विद्वानों, विचारकों, चिन्तकों, ज्ञानियों, तपस्वियों, ऋषियों, मुनियों, सहित समाज के प्रबुद्ध और अनुभवी लोगों की निर्णयात्मक शुद्ध बुद्धि द्वारा आनन्दमय जीवन के लिए ढूँढ़े गए मार्ग या बनाए गए नियमों का समुच्चय होता है, जिसकी आस्थापूर्ण मान्यता स्वानुभूत ज्ञान द्वारा निर्विवाद रूप से समाज में स्थापित होती है। औचित्य बोध से उपजे

आचरण के दीर्घ अभ्यास से श्रेष्ठ संस्कृति का सृजन होता है। इसकी प्रकृति सार्वभौमिक, शाश्वत एवं निरपेक्ष जैसी होती हैं। इसलिए धर्म मूल रूप में मानव धर्म होता है। पूरी दुनिया में प्राचीन काल में, यह सिर्फ भारतीय भूखण्ड पर ही विकसित हुआ । यहाँ के मूल वासिन्दों को हिन्दू कहे जाने के कारण इस सनातन धर्म को हिन्दू धर्म भी कहते हैं। इसके बोध से विचारों की स्वतंत्रता और आत्म-अनुशासन की अवचेतन अन्तर्पेरणा पैदा होती है। इससे समाज में स्वतंत्रता, सहिष्णुता, शान्ति, सुव्यवस्था, ज्ञान, वैभव और चहुँमुखी आनन्द का वातावरण बनता है। इसी कारण प्राचीन भारत में उच्च संस्कृति विकसित हो सकी। विचारों की स्वतंत्रता के कारण अनेक कर्मकाण्ड, पंथ और उससे जुड़ कर सम्प्रदाय बनते बिगड़ते रहते हैं। सामान्य लोग किसी न किसी सम्प्रदाय या पंथ से जुड़ कर जीवन व्यतीत करते हैं। वैचारिक स्वतंत्रता का बोध परस्पर विरोधी विचारों या पंथों को बने रहने में कोई रुकावट नहीं डालता है, इसलिए समाज सहिष्णु होता है। ज्ञान, अनुभव और तर्क की प्रधानता रहती है। परिणाम स्वरूप बदलते परिवेश में देश, काल और परिस्थिति के अनुसार मानवता के कल्याण, सुख एवं आनन्द हेतु नये मार्ग निर्धारण की स्वतंत्रता बनी रहती है । यद्यपि अतीत से बँध जाने की मानव प्रकृति के कारण, पंथों- सम्प्रदायों द्वारा रुकावटें पैदा की जाती हैं, अंध विश्वास और सामाजिक रूढ़ियाँ उपजती हैं, फिर भी धर्म उन सारे बंधनों और भटकावों से छुटकारा दिलाने में समर्थ होता है। सामान्य भारतवासी पर इस संस्कृति का सदा अवचेतन प्रभाव विद्यमान रहता है। कोई वैसा सम्प्रदाय विकसित नहीं हो पाता है जो अपने विचार को मानने के लिए दमन का सहारा ले। धर्म की प्रधानता बनी रहती है, इसलिए प्राचीन भारत में राजनीति, अपनी अहंकारी, उद्दण्ड, अक्खड़ और निरंकुश प्रकृति के बावजूद धर्म से नियन्त्रित होती थी। राजकाज धर्म के नियमों से चलता था ।

Weight 500 kg

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