Bhartiya Sahitya Mein Vidya ka mahatva भारतीय साहित्य में विद्या का महत्व
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विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयः सह 1 अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥–यजुः ० ४० १४अर्थ – जो मनुष्य विद्या और अविद्या के स्वरूप को साथ – साथ जानता है वह अविद्या अर्थात् कर्मोपासना से मृत्यु को तरके विद्या अर्थात् यथार्थ ज्ञान से मोक्ष को प्राप्त होता है ।विद्या के विषय में वेद में बहुत कुछ कहा है- न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरो दधर्षति । देवांश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित्ताभिः सचते गोपतिः सह ॥ -अ० ४।२१/३ अर्थ – विद्याएँ कभी नष्ट नहीं होती हैं, यह अनश्वर धन हैं। विद्या-धन को तस्कर चुरा नहीं सकते, दुःखदायी शत्रु भी इसका तिरस्कार नहीं कर सकते । विद्या धन वह धन है जिसके द्वारा देवयज्ञादि पञ्चयज्ञ किये जाते हैं और जिसका दान सर्वोत्तम है तथा इन्द्रियों के स्वामी जीवात्मा गोपति का निरन्तर इस विद्या के साथ सम्बन्ध रहता है अर्थात् मरने पर जीवात्मा के साथ केवल विद्या- धन ही जाता है, अन्य सारे सांसारिक ऐश्वर्य यहीं रह जाते हैं ।
Weight | 150 kg |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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