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Bhartiya Prachin Lipi Mala भारतीय प्राचीन लिपि माला

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वर्तमान तक पहुंची लिपियों की मूललिपि क्या और कैसी रही होगी, लिपि की यात्रा कब और कहां से आरंभ हुई, ऐसे कई सवाल हैं जिनको लेकर भाषाविदों, पुराविदों और लिपि चिंतकों में विगत लगभग डेढ़ सदी से तर्क-वितर्क रहे हैं। किंतु, लिपि किसी विरासत से कम नहीं, यह संजीवनी है और बीजरूप में मानव व्यवहार के साथ संपृक्त रही है। भाषा तो किसी भी जीव जगत की हो सकती है किंतु लिपि मानव व्यवहार की प्रतीक है। यह भाषा के प्रत्यक्षीकरण का स्वरूप और प्रतीक चिह्न है। जो हमारी अभिव्यक्ति का सरल साधन भी है।

प्रस्तुत पुस्तक में सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक लिपियों का विस्तार से विकास और परिवर्तन दर्शाया गया है।

पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा का जन्म 15 दिसंबर, 1863 गांव रोहेड़ा (सिरोही जिला, राजस्थान) में हुआ था। उन्होंने एलिफंस्टन हाई स्कूल बंबई से 1885 ई. में मेट्रिकुलेशन किया। स्वर्गवास : 17 अप्रैल 1947 1

प्रकाशित पुस्तकें : सोलंकियों का प्राचीन इतिहास; सिरोही राज्य का इतिहास; राजपूताने का प्राचीन इतिहास; उदयपुर राज्य का इतिहास, डूंगरपुर राज्य का इतिहास; बांसवाड़ा राज्य का इतिहास; बीकानेर राज्य का इतिहास; जोधपुर राज्य का इतिहास; प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास; ओझा निबंध संग्रह; ओझाजी द्वारा समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में लिखित निबंधों का संग्रह

1954 ई. में दो भागों में प्रकाशित हुआ; कर्नल जेम्स टॉड का जीवन चरित्र; भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास की सामग्री; बापा रावल का सोने का सिक्का; वीर शिरोमणि महाराणा प्रतापः मध्यकालीन भारतीय संस्कृति नामक ग्रंथ भी ओझाजी द्वारा लिखे गये।

Weight 1000 kg

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