Antriksh Vashisht Braham Aadi vigyan
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” परमपिता परमात्मा का ज्ञान अनन्त है, गुह्य है, अतीन्द्रिय है उस ज्ञान के तीन पाद सदा छिपे हुए हैं, उस छिपे हुए ज्ञान को पहचानना मनुष्य के लिये बहुत सुकर नहीं है। उस अतीन्द्रिय ज्ञान को प्रत्यक्ष अनुमान और शब्द के द्वारा जान पाना अत्यन्त कठिन है। ऐसे ज्ञान के आधार पर परमात्मा द्वारा निर्मित पदार्थ भी अतीन्द्रिय हैं, अज्ञात हैं। वे विशिष्ट पदार्थ तीनों लोकों में हैं, यानी अन्तरिक्ष व द्यौलोक में जो पदार्थ हैं वे पृथिवी पर भी हैं, अन्तर बस इतना है कि पृथिवी के पदार्थ जड़ चेतन उभयविध हैं, अन्तरिक्ष और द्यौलोक के पदार्थ मात्र जड़ हैं। इन पदार्थों की संज्ञायें गुण, कर्म, स्वभावानुसार परमात्मा ने की हैं। पृथिवी के पदार्थों को हम परम्परा से जानते समझते आ रहे हैं, अतः वे हमारे लिए कठिन नहीं होते। लेकिन जो द्यौलोक और अन्तरिक्ष में पदार्थ हैं वे हमारे ज्ञान की पहुँच से परे हैं, जब उनको जानने की चेष्टा करते हैं तो मानक रूप में पृथिवी के पदार्थों या व्यक्ति विशेषों को सामने रख करके करते हैं, जिससे होता यह है कि हम उन पदार्थों की यथार्थता तक पहुँच ही नहीं पाते।
उन पदार्थों की गवेषणा करते हुए प्रायः हम ऐसे निचोड़ पर पहुँचते हैं जो न तो बुद्धिगम्य होता है, न तर्कगम्य और उन पदार्थों की यथार्थता एक इतिहास की कल्पना मात्र में समाहित हो जाती है। उन अन्तरिक्ष एवं द्यौलोक स्थित पदार्थों में वयांसि, इरपाद, सरीसृप, सुरा, अयोदंष्ट्र, वसिष्ठ, वसिष्ठपुत्र, इन्द्र, मरुत् आदि पदार्थ हैं जो पृथिवीस्थ पदार्थों या
न त्रिभिरपौरुषेयत्वात् वेदस्य तदर्थस्यातीन्द्रियत्वात् । सां०८० ५। १।४१ ॥ २. पादोऽस्य विश्वाभूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि । यजु० ३१ ३ ॥
Weight | 500 kg |
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