Aastikvad आस्तिकवाद
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आस्तिकवाद एक भावना है जो मनुष्य को सर्वज्ञ ईश्वर की सत्ता स्वीकार करते हुए तदनुरूप कर्म करने को प्रेरित करती है। जिसमें यह भावना होगी वह हमेशा सत्कर्म द्वारा अपना तथा अपने क्षेत्र के प्राणिमात्र का भला ही करेगा। जब व्यक्ति की समस्त चेतना व ऊर्जा एक दिशा में लगेगी तो अन्य के करने का अवकाश ही कहाँ है। जब प्रत्येक मनुष्य का साध्य व साधन समान हों तो सुख शान्ति सम्पन्नता के अतिरिक्त क्या रहेगा । –
जब से आस्तिकभाव के अर्थ सर्वशक्तिमान्, सच्चिदानन्द परमात्मा से हटकर किसी व्यक्ति में निहित किये गये तभी से विपरीत स्थितियाँ उत्पन्न हुईं और व्यक्ति-व्यक्ति के मध्य दीवार खड़ी होनी प्रारम्भ हुई एवं कलह, कष्ट, अभाव का जन्म हुआ। दूसरे प्रकार से कहें तो आस्तिकता लक्ष्य प्राप्ति व सर्वसुखों का प्राप्त करना है।
यह भावना तभी आ सकेगी जब मनुष्य यह अनुभव करे कि वह अल्पज्ञ और जो सर्वज्ञ है वह एक ही है तथा उसी की स्तुति – प्रार्थना-उपासना द्वारा अभाव की पूर्ति की जा सकती है । इसके अतिरिक्त भौतिक उन्नति का साधन विज्ञान से इसका विरोध नहीं. अपितु यह जीवन का पूरक व आवश्यक अंग है । शर्त यही है कि इसकी दिशा परमाणु से जीवनोपयोगी शक्ति के साधन प्राप्त करना हो न कि नाश के साधन उत्पन्न करना ।
प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान्, चिन्तन लेखक ने कुशलतापूर्वक विषय का प्रतिपादन कर सर्वजनहिताय मार्ग का दर्शन कराया है। इसके मननपूर्वक अध्ययन द्वारा पाठकों का दिशा-निर्देश व भला होगा। हमारे माननीय प्रा० श्री राजेन्द्रजी ‘जिज्ञासु’ ने उपयोगी टिप्पणियाँ देकर पुस्तक को और अधिक उपयोगी बना दिया है।
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