The only center for rare books & Free shipping for orders over ₹501

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop

The only center for rare books & Free shipping for orders over ₹501

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop

मृत्यु का स्वरूप mrutyu ka Swaroop

150.00

Calculate shipping price

Please fill in the fields below with the shipping destination details in order to calculate the shipping cost.

जन्म और मृत्यु अथवा निर्माण और विनाश, सृष्टि की दो ऐसी रहस्यमयी व्यवस्थाएं हैं जो ईश्वराधीन हैं और जिनके प्रति जानने की उत्सुकता मानव को आदिकाल से रही है, वर्तमान में भी है, और जब तक सृष्टि में जीवन रहेगा तब तक बनी रहेगी। प्रत्येक युग के मनीषियों ने इन विषयों पर चिन्तन कर अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं किन्तु मनुष्यों की इन विषयक जिज्ञासा शान्त नहीं हो पा रही है। मनुष्य बुद्धिजीवी प्राणी है, उत्सुकता, जिज्ञासा, चिन्तन उसकी स्वाभाविक प्रवृत्तियां हैं, अत: वे निरंतर बनी रहेंगी। उन जिज्ञासाओं की शान्ति के लिए समाधान उपलब्ध कराना मनीषियों, लेखकों और वक्ताओं का कर्तव्य है।

इसी परम्परा में श्री कन्हैयालाल आर्य ने ‘मृत्यु का स्वरूप’ नामक पुस्तक प्रस्तुत की है जिसमें उन्होंने मृत्यु-विषयक प्रायः सभी जिज्ञासाओं का समाधान करने वाली सामग्री विस्तार से उल्लिखित की है। संस्कृत, हिन्दी और इंग्लिश भाषा के प्रमाणों तथा उद्धरणों से उन्होंने अपने लेखन को पुष्ट भी किया है। इस पुस्तक को पढ़कर पाठक को जहां मृत्यु के स्वरूप की वास्तविक जानकारी मिलेगी वहीं मृत्यु विषयक जिज्ञासाओं का समाधान भी मिलेगा। पाठकों को इस पुस्तक का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। यह जीवनोपयोगी पुस्तक है । लेखक इसके लिए बधाई के पात्र हैं। उन्होंने इसके लेखन में बहुत श्रम किया है।

मृत्यु को कोई नहीं चाहता किन्तु मृत्यु सबकी अवश्यंभावी है, अटल है, अपरिहार्य है। मृत्यु संसार में सबसे बड़ा ऐसा कष्ट है जिसका समाधान मनुष्य के पास नहीं है, अत: वह किसी प्रिय जन की मृत्यु होने पर रोता-बिलखता है, सुधबुध खो देता है, कभी-कभी शोक की अधिकता से अपने प्राण भी खो देता है । इस शोक के कारण तो अनेक हैं किन्तु उसका समाधान शास्त्रों ने एक ही बताया है, वह है- ‘विवेक’, अर्थात् मृत्यु के सही और वास्तविक स्वरूप को जानना और मानना

तथा ईश्वरीय व्यवस्था को हृदय से स्वीकार करना। महाभारत के युद्ध के संग्राम में मोह और शोकग्रस्त अर्जुन को योगिराज श्रीकृष्ण ने निम्नलिखित एक ही तथ्य मुख्य रूप से समझाया है

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ।। ( 2.18 )

‘हे अर्जुन! संसार का नियम है कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु अवश्य होगी और जिसकी मृत्यु होगी उसका पुनर्जन्म भी अवश्य होगा। अतः जो अवश्यंभावी स्थिति है उस पर शोक करना निरर्थक है।’ मृत्यु पर शोक करने का कोई लाभ नहीं हो सकता, चाहे सारी दुनिया एकत्र होकर शोक मनाले । अतः विवेकपूर्वक सुखदु:ख में संतुलन बनाने का प्रयास करने में ही बुद्धिमत्ता है। यही स्वस्थ जीवन शैली है।

भयों से डरने वाले जनों के लिए सर्वाधिक भयप्रद स्थिति मृत्यु की होती है। इस भय से प्रत्येक प्राणी सुरक्षित रहना चाहता है। इस भय से बचने के लिए मनुष्यों है ने कई उपाय अपनाये हैं। आस्तिक व्यक्ति परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता है कि वह मृत्यु को उससे, उसके परिजनों-संबंधियों से दूर रखे। वेद के एक मन्त्र में भक्त भगवान् से प्रार्थना करते हुए कहता है

परं मृत्योरनुपरेहि पन्थाम्… । मा नः प्रजां रीरिषो मोत वीरान् । (त्रग्वेद 10.18.1)

‘हे परमपिता परमात्मा ! मृत्यु को हमारे से दूर रखिए। वह न तो हमारे परिजनों और न हमारी सन्तानों पर प्रभावी हो।’ वह यह भी प्रार्थना करता है कि हम ‘जीवेम शरदः शतम्… भूयश्च शरदः शतात्’ (यर्जेद 36.24) ‘सौ वर्ष की औसत पूर्णायु प्राप्त करें, सभी इन्द्रियां स्वस्थ रहें, और इस प्रकार जीवित रहते हुए सौ वर्ष से भी अधिक आयु प्राप्त करें।’ पूर्णायु प्राप्त करने का भाव है पूर्णायु से पूर्व मृत्यु को प्रभावी न होने देना।

वैदिक जीवन शैली में प्रार्थना करने का अभिप्राय यह नहीं कि ‘मनुष्य निठल्ला बैठकर, हाथ जोड़कर परमात्मा से याचना करता रहे’। प्रार्थना का अर्थ है

संबंधित भावात्मक याचना के साथ वांछित लक्ष्य प्राप्ति के लिए यथाशक्ति प्रयास भी करना।’ ऐसा करने से प्रार्थना की प्रक्रिया पूर्ण सफल होती है। वेदों में मृत्यु से बचाव अथवा उस पर विजय करने का अर्थ है- ‘स्वस्थ रहने और मृत्यु से बचने के आहार-विहार संबंधी समस्त उपाय आचरण में लाना ।’ उन उपायों से आयु भी बढ़ती है और मृत्यु भी दूर रहती है। उन उपायों का पुस्तक में विस्तृत उल्लेख किया गया है। पाठक उनको अपनाकर लाभ प्राप्त कर सकते हैं, वेद के इस आश्वासन पर भरोसा कर सकते हैं-

‘मा बिभेः न मरिष्यसि’ (अथर्ववेद 5.30.8)

‘हे मनुष्य ! मृत्यु से मत डर, स्वस्थ रहने के आहार-विहार सम्बन्धी उपायों को आचरण में ग्रहण कर, तू दीर्घायु से पूर्व नहीं मरेगा; और इस प्रकार मृत्यु के तीव्र कष्ट की अनुभूति में भी संतुलन बनेगा। याद रखें, मृत्यु अवश्यंभावी तो है किन्तु निश्चित नहीं । मृत्यु को रोकने के लिए किया गया प्रयास अनेक बार जीवन की रक्षा करता है।’ यह हम प्रतिदिन प्रत्यक्ष देखते हैं । यही समझाना प्रस्तुत पुस्तक का कल्याणकारी उद्देश्य है ।

डा. सुरेन्द्र कुमार, पूर्व कुलपति, गुरुकुल कांगड़ी, विश्वविद्यालय, हरिद्वार

Weight 500 kg

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “मृत्यु का स्वरूप mrutyu ka Swaroop”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop