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Aitareyaranyakam ऐतरेयारण्यकम्

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वेद और आश्रम – व्यवस्था का घनिष्ठ सम्बन्ध है। वेदों का विभाजन चार भागों में – है— संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् । संहिता में मन्त्रों का सङ्कलन है । ब्राह्मण उन मन्त्रों के व्याख्याग्रन्थ हैं। इसमें मन्त्रों की विभिन्न दृष्टियों से व्याख्या की गयी है और याज्ञिक दृष्टि से उनका विनियोग बतलाया गया है। आरण्यकग्रन्थ ब्राह्मण और उपनिषद् के बीच की कड़ी हैं। जहाँ ब्राह्मणग्रन्थों में याज्ञिक विधिविधान हैं वहीं उपनिषद् में आत्मा और परमात्माविषयक ज्ञान का प्रतिपादन हुआ है। आरण्यकग्रन्थों में ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णित याज्ञिक प्रक्रिया इत्यादि का उपनिषद् ग्रन्थों में प्रतिपादित आत्मा और परमात्मा से सामञ्जस्य उपस्थापित किया गया है। इस प्रकार ये ब्राह्मणों और उपनिषदों का समायोजन करते हैं । ब्राह्मण कर्म के प्रतिपादक ग्रन्थ है और उपनिषद् ज्ञान के | आरण्यक कर्म और ज्ञान दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करता है । इस प्रकार आरण्यक जितना अपने पूर्ववर्ती ब्राह्मणग्रन्थ से सम्बद्ध है उतना ही परवर्ती उपनिषद् से । आरण्यक ब्राह्मण ग्रन्थों के परिशिष्टभाग अथवा पूरक हैं और प्रायः उपनिषद् इन्हीं में समाहित हैं। वेदों के समान ही मानवजीवन को भी सौ वर्ष का मानकर ऋषियों ने उसे चार भागों में विभक्त किया है, जिसे आश्रमव्यवस्था के नाम से जाना जाता है । वेदों के समान आश्रम भी चार हैं – ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम | ब्रह्मचर्याश्रम शिक्षाप्राप्ति का आश्रम है ।

Weight 900 kg
Dimensions 22 × 14 × 3 cm

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