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Ved Vidya Nirdeshan Spiral Binding

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नोट:- यह पुस्तक Spiral Binding में Photocopy करवा कर ही भेजी जा सकती है क्योंकि अब यह out of print हो चुकी है और लेखक के वारिस ने इसे अभी तत्पुकाल पुनः प्रकाशित कराने से इंकार कर दिया है. अतः सिर्फ विशेष अनुरोध पर इस पुस्तक की फोटोकॉपी ही spiral binding करवा कर भेजी जा सकती है। पुस्तक की गुणवत्ता ठीक और पढने योग्य है, आप इस पर विश्वास कर सकते है। वेद के प्रति श्रद्धा – संवत् १९३२ के समीप अनेक शतियों के पश्चात् भारत में एक सिंहनाद हुआ। यह असाधारण गर्जन था। मुनिवर दयानंद सरस्वती ने जयघोष किया, वेद सब सत्य विद्यायों का भण्डार है। वेद से अधिक सत्य ज्ञान अन्यत्र नहीं है। अमृतसर, पंजाब के एक आर्य-सामाजिक परिवार में (सन् १८९३, संवत् १९५०) जन्म लेने के कारण मैं इस सत्य को बाल्यकाल से सुनता आया था। इसका मेरे पर प्रबल संस्कार था। वर्तमान विज्ञान का प्रभाव – अब स्कूल और कालेज में (सन् १९१३ तक) मैंने विज्ञान का विषय पढ़ा। दिन-दिन इसका प्रभाव अधिक हुआ। संस्कृत भाषा का मुझे ज्ञान नहीं था। विज्ञान की वर्तमान संज्ञाओं का प्रभाव इतना गहरा हुआ कि मैं विज्ञान विषयक किसी पुरानी बात को समझने से अशक्त हो गया। स्कूल में मैंने पढ़ा कि पंञ्चभूत तत्त्व (elements) नहीं हैं। प्रत्युत सुवर्ण, लोह और पारद आदि पदार्थ तत्त्व हैं। अतः अग्नि: आदि तत्त्वों के परमाणुओं के मानने से बुद्धि परे हट रही थी। अपरञ्च, वर्तमान पाश्चात्य विज्ञान की अधूरी संज्ञाओं के कुप्रभाव से प्राचीन विचार बुद्धि-गम्य न होते थे।

Weight 1000 kg

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