Yajya mahavigyan spiral binding
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नोट:- यह पुस्तक Spiral Binding में Photocopy करवा कर ही भेजी जाती है क्योंकि अब यह out of print हो चुकी है और लेखक के वारिस ने इसे अभी तत्पुकाल पुनः प्रकाशित कराने से इंकार कर दिया है. अतः सिर्फ विशेष अनुरोध पर इस पुस्तक की फोटोकॉपी ही spiral binding करवा कर भेजी जाती है। पुस्तक की गुणवत्ता ठीक और पढने योग्य है, आप इस पर विश्वास कर सकते है। यज्ञ महाविज्ञान है । सब कार्यो की सिद्धि करता है। यज्ञ का आधार वेद है । वेद सर्व विद्यामय हैं । अतः वेद मन्त्रों में अनन्त सामर्थ्य है । इसीलिए कहा गया है कि- यं यं कामयते कामं तं तं वेदेन साधयेत । असाध्यो नास्ति यत्किञ्चित् ब्रह्मणो हि फलं महत् ॥ अर्थात् समस्त कामनाओं की पूर्ति की साधना वेद के द्वारा सिद्ध करें । वेद के सम्मुख साध्य कुछ नहीं है । यही वेद की महान् सामर्थ्य हैं- — अतः वेद का फल अपूर्व है । उपरोक्त वाक्य वेद के यज्ञ – विज्ञान के महत्व को प्रकट कर रहे हैं । अयं यज्ञो भुवनस्य नाभि: (यजुर्वेद प्र. २३।६३) यज्ञ ही समस्त संसार की नाभि है – केन्द्र है—उत्पत्ति स्थान है- इसी से समस्त लोक-लोकान्तर बंधे हुए हैं । इसीलिये – यत्कामास्ते जुहमस्तन्नो अस्तु (यजुर्वेद २३।६५) अर्थात् जिस कामना के लिये हम यज्ञ करें वह कामना हमारी पूर्ण हो – फलीभूत हो —यह वेद ने कहा है । हमने यज्ञों के द्वारा बुद्धि वृद्धि, श्री वृद्धि, गूंगों में वाणी की प्राप्ति, विविध प्रकार के रोगों की निवृत्ति, मानसिक रोग, लकवा, वायु रोग, कफ रोग, श्वास, दमादिनिवृत्ति, हृदय रोग, शक्ति आदि अनेक रोगों में अद्भ ुत लाभ प्राप्त किया। भीषण प्रचण्ड गर्मी में यज्ञ से तापमान में न्यूनता देखी ।
Weight | 1000 kg |
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