Vaidik Swarg
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मृत्यु के पश्चात् क्या होता है ? यह एक रहस्य है, जिसे सुलझाने का प्रयास मानव-बुद्धि सदा से करती चली आई है। यदि मृत्यु के साथ मानव-जीवन की कथा सदा के लिए समाप्त हो जाती है तो धर्म, सदाचार, पाप, पुण्य, बुराई, भलाई, ये सब केवल कल्पना मात्र रह जाते हैं। एक अत्यन्त लाभप्रद एवं कर्मठ जीवात्मा का अचानक अभाव हो जाए, जिस मनुष्य का जीवन सहस्रों व्यक्तियों की आशाओं का आधार बन रहा है, जिसने आध्यात्मिक एवं नैतिक उन्नति के प्रयास में कोई कसर नहीं उठा रखी, वह क्षण भर में ही समाप्त हो जावे और उसके समस्त चारित्रिक एवं आत्मिक प्रयास जलबुद्बुदवत् विलीन हो जावें, इसे मानव की तर्कशींल बुद्धि उपयुक्त स्वीकार नहीं कर सकती । बौद्धिक तथा चारित्रिक उन्नति के प्रयास हर मूल्य पर सफल होने चाहियें – यह वह विश्वास है, जिसके आधार पर मानव समाज की नींव स्थिर खड़ी है। न्याय तथा कर्म-फल की सारी कल्पना ही इसी एक विश्वास पर आधारित है। मनुष्य का न्याय तो भगवान् के न्याय के थोड़े-से अनुकरण का अधूरा-सा प्रयास ही है । इधर मानव बुद्धि को ईश्वर के न्याय पर पूर्ण विश्वास है, उधर इस असार संसार में लाखों कर्म, लाखों प्रयास, लाखों परिश्रम प्रतिदिन व्यर्थ जाते दीखते हैं; अत्यन्त श्रेष्ठ तथा लाभप्रद जीवन देखते-देखते मृत्यु का ग्रास बन रहे हैं। प्रश्न होता है – क्या मानव जीवन का यही अन्तिम परिणाम है ? बुद्धि इसे स्वीकार नहीं करती। प्रयास को पनपने का, योग्यता को विकास का, और परिश्रम को सफल होने का अवसर अवश्य मिलना चाहिये । यदि इस जीवन में निराशा के उदाहरण अधिक हैं तो अवश्य ही इस जीवन के पश्चात् दूसरा जीवन होना चाहिये । मानव-बुद्धि इसी आधार पर जीवित है और धर्म की ओर से उसे यह हर्षप्रद समाचार मिलता है कि यह शरीर आत्मा का मृत्यु – स्थल नहीं बनने दिया जावेगा; मृत्यु शरीर की होती है
Weight | 400 kg |
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