SHANKHDYANGRIHASUTRAM
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गृह्य का तात्पर्य पत्नी के साथ किये जाने वाले कर्म से है। इन कर्मों का विधान जिन सूत्रग्रन्थों में उपलब्ध होता है, वे गृह्यसूत्र कहलाते हैं । गृह्यसूत्र स्मृतियों के ऊपर आधारित होने या स्मृति विषयों का प्रतिपादन करने के कारण स्मार्त ग्रन्थ भी कहे जाते हैं। श्रौतग्रन्थों में पुरोहितवर्ग द्वारा तीन या इससे अधिक अग्नियों में सम्पादित होने वाले महायज्ञों के धार्मिक क्रिया-कलापों का वर्णन है। गृह्याग्नि में सम्पन्न होने वाले संस्कारों, प्रतिदिन की धार्मिकक्रियाओं से सम्बन्धित तथा गृहस्थ के कर्मों की विवेचना करने के कारण द्वितीय शृङ्खला को गृह्यसूत्र कहते हैं । वस्तुत: गृह्यसूत्र भारतीय पारिवारिक जीवन के अत्यन्त सुन्दर आकड़ा प्रस्तुत करने वाले ग्रन्थ हैं। इसमें घरेलू जीवन से सम्बद्ध दैनिक, पाक्षिक, मासिक तथा वार्षिक यज्ञों का विवेचन किया गया है। गृह्यसूत्रों में वर्णित यज्ञों का रूप कुछ निश्चित हुआ करता है। गृह्याग्नि से यज्ञाग्नि प्रज्वलित की जाती है और उसमें देवताओं के लिए आहुतियाँ दी जाती हैं। इन दैनिकयज्ञों के अतिरिक्त प्रत्येक आर्य का यह धार्मिक कर्त्तव्य होता है कि इन्द्रादि देवों से सम्बन्धित यज्ञों को करे ।
Weight | 1000 kg |
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