Taittriya Pratishakhya with Detailed Explanation
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‘प्रातिशाख्य’ वेद की संहिताविशिष्ट से सम्बन्धित प्रन्थ है। दाङ प्रायः वेद की सभी शाखाओं की संहिताओं के विषय में सामान्य रूप में विथन करते है। इनम किया शाखा विशिष्ट को लक्ष्य बनाकर विधान नहीं होता। यद्यपि इनमें विहित विधान विश्वा व्याकरण तथा छन्द नामक वेदाङ्गों में विहित है तथापि शाखा विशिष्ट के महिना विषयक विधान होने से इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैसा ऋग्वेदप्रातिशास्य के भाष्यकार उवट ने भी कहा है कि शिक्षा, छन्द और व्याकरण के द्वारा सामान्यरूपेण किया गया लक्षण इस शाखा – विशिष्ट में इस प्रकार है-यही बतलाना प्रातिशाख्य ग्रन्थों का प्रयोजन है ।’ प्रातिशाख्यकार कात्यायन ने वाजसनेयिप्रतिशाख्य में प्रातिशाख्य का प्रयोजन बतलाते हुए कहा है कि वर्णों के दोष के विवेचन के लिए श्रातिशाख्य का अध्ययन करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि संहिता पदों से और पद वर्णों से निर्मित होते हैं । अत: संहिता के शुद्ध उच्चारण के लिए उसके वर्णों के शुद्ध उच्चारण का ज्ञान आवश्यक है। वर्णोच्चारण में होने वाले दोषों तथा उनके शुद्ध उच्चारण की विधि इत्यादि का ज्ञान प्रातिशाख्यों में विहित है। बिना प्रातिशाख्यों के अध्ययन से शुद्ध वर्णोच्चारण का ज्ञान सम्भव नहीं है। अतः वर्गों के शुद्ध उच्चारण के लिए प्रातिशाख्यग्रन्थों का अध्ययन अपेक्षित है।
Weight | 1000 kg |
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