Taittriya-Brahmana of Krsna-Yajurved Vol 1-3
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वैदिक साहित्य में संहिताओं के पश्चात् ब्राह्मण-ग्रन्थों का स्थान आता है। ये ग्रन्थ वैदिक साहित्य के अभिन्न अङ्ग माने जाते हैं। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है – मन्त्र, यज्ञ आदि । वैदिक साहित्य का वह भाग जो विविध वैदिक यज्ञों के लिए वेद-मन्त्रों के प्रयोग के नियमों, उनकी उत्पत्ति, विवरण व्याख्या आदि प्रस्तुत करना है और जिसमें स्थान-स्थान पर सुविस्तृत दृष्टान्तों के रूप में परम्परागत कथाओं का समावेश है ‘ब्राह्मण’ कहलाता हैब्राह्मणं नाम कर्मणस्तन्मन्त्राणां च व्याख्यानग्रन्थः । वास्तव में यज्ञ – विज्ञान का गम्भीर विवेचन करने वाले ग्रन्थ ही ‘ब्राह्मण’ कहलाते हैं। वैदिक विद्वान् ब्राह्मण-ग्रन्थों को भी ‘वेद’ कहते हैं- मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् अर्थात् मन्त्र और ब्राह्मण भाग का सामूहिक नाम ‘वेद’ हैं। शबरस्वामी ने ब्राह्मग्रन्थों की विषय-सामग्री को इस प्रकार बतलाया है— हेतुर्निर्वचनं निन्दा प्रशंसा संशयो विधिः । परक्रिया पुराकल्पो व्यवधारणकल्पना | TE RES उपमानं दशैते तु विषया ब्राह्मणस्य च ।। (शाबस्भाष्य २.१.८) अर्थात् यज्ञ क्यों किए जाँय, कब किए जाँय, किन साधनों से किए जाँय, यज्ञ के अधिकारी कौन हैं, कौन नहीं है, इत्यादि विभिन्न विषयों का निर्देश इन ब्राह्मणग्रन्थों में किया गया है। ब्राह्मण-ग्रन्थ के वर्ण्यविषय को चार भागों में बाँटा जा सकता है— १ . विधिभाग २. अर्थवाद भाग ३. उपनिषद् भाग तथा ४. आख्यान भाग । विधिभाग में यज्ञों के विधानों का वर्णन है । इसमें यज्ञीय कर्मों का अर्थ तथा अनेक शब्दों की व्युत्पत्ति बतलायी गयी है। अर्थवादभाग में यज्ञों के माहात्म्य को समझाने के लिए प्ररोचनात्मक विषयों का समावेश है। इसमें यज्ञीय कार्यों के समर्थन में सुन्दर-सुन्दर कथाएँ कही गयी हैं ।
Weight | 5000 kg |
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