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Paraskar Grihysutra

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गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय में एम० ए० कक्षाओं को कल्पसाहित्य पढ़ाते हुए पारस्करगृह्यसूत्र को भी पढ़ाना पड़ा। इसमें कई स्थल ऐसे मिले जो वैदिक मान्यताओं से सर्वथा विरुद्ध थे। जैसे कि अर्घ्य लोगों को गोदान में दी जानेवाली गाय को मारना अन्नप्राशन में नन्हे शिशु को जलचर, थलचर तथा नभचरों का माँस खिलाना तथा शूलगव तथा अष्टका में गो पशु का मारना आदि। मैंने इस पर विचार किया और पहले काण्ड का भाष्य तैयार किया। वह वर्षों तक ऐसे ही लिखा हुआ पड़ा रहा। एक बार पण्डित राजवीर जी शास्त्री सम्पादक ” दयानन्द सन्देश” मिलने आए तो उन्होंने पूछा कि आजकल क्या लिख रहे हैं? मैंने कहा कि मैंने तो लेखन पर विराम लगा रखा है, क्योंकि जब कोई प्रकाशित करनेवाला न हो तो लिखने में श्रम करना व्यर्थ है। उन्होंने कहा कि आप उसे मुझे दीजिए मैं उसे ‘दयानन्द सन्देश’ के विशेषाङ्क के रूप में प्रकाशित करूँगा । उन्होंने ऐसा ही किया और अनेक विद्वानों ने उस पर हर्ष भरी सम्मति भेजी। यह कार्य वर्षों पुराना है, सौभाग्य की बात है कि घूडमल प्रहलादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास के अध्यक्ष श्री प्रभाकरदेव आर्य का दूरभाष पर सन्देश मिला कि आप गृह्यसूत्रों पर लिखिए, मैं प्रकाशित करूँगा । उन्हीं की प्रेरणा के फलस्वरूप मैंने उस अधूरे कार्य को आगे बढ़ाया और विषम परिस्थितियों में भी परमेश्वर की कृपा से यह कार्य पूर्ण हुआ ।

Weight 1000 kg

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