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Shatpath Ke Das path Vol- 1

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माध्यन्दिनशतपथ के अग्नीषोमीय पशुयाग का भाष्य

यूपसम्पादन ज्ञानाप्यायन कर्त्ता प्राचार्य का चयन ( A seleclion of spiritual instructor )

( काण्ड ३, अ० ६, ब्राह्म० ४) $ महर्षि याज्ञवल्क्य अग्नीषोमीय पशुयाग का ध्याख्यान श्रागे करेंगे । अग्नीषोमीय पशुयाग में पशु को सञ्ज्ञपन के लिये ग्रूप के साथ बान्धाजाता है । ब्राह्मण प्रवक्ता का स्पष्ट मन्तव्य है कि बिना यूप के पशुसञ्जपन कदापि नहीं हो सकता। इसलिये यूप तथा पशु सञ्ज्ञपन का अविनाभावी सम्बन्ध है । यही कारण है कि महर्षि याज्ञवल्क्य पशु सञ्ज्ञपन के लिये अत्यन्त आवश्यक यूप के सम्पादन एवं उसके प्रतिष्ठापन का विवरण पहले प्रस्तुत कर रहे हैं। प्रतीकात्मक (Symbolical) यज्ञ में यह यूप लगभग मनुष्य की लम्बाई जितना पलाश वृक्ष के काष्ठ का स्तम्भ होता है, जिसको उत्तरवेदि के ठीक पूर्व में गाड़ा जाता है । इस काष्ठस्तम्भ के साथ पशु को सञ्ज्ञपनार्थ बान्धा जाता है । यह यूप किस अर्थ का प्रत्यायक है यह शतपथकार ने बोधित कराते हुये लिखा है

यजमानो वा एष निदानेन यद् यूपः । ‘

अर्थात् यह यूप इस यज्ञ का यजमान है । ब्राह्मणकार ने यजमान शब्द को यज्ञ के सञ्चालक के अर्थ में प्रयोग किया है | यहां प्रकृत में यज्ञ शब्द से पशुसञ्जपन का ग्रहण है । शतपथकार ने यूप शब्द का निर्वचन अनेकत्र किया है । इस यूप सम्पादन के प्रकरण में भी ब्राह्मणकार ने यूप शब्द के निर्वचन द्वारा उसके स्वरूप एवं प्रयोजनीयता का प्रकाशन करते हुये लिखा है

यज्ञेन वै देवा इमां जिति जिग्यु:- यैषामियंजितिः । ते होचुः कथं न इदं मनुष्यैरनभ्यारोह्य स्यादिति । ते यज्ञस्य रसं धीत्वा

१. मा. शा. ३-७-१-११

Weight 600 kg

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