Shatpath Subhashit शतपथ सुभाषित
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शतपथ वास्तव में वेदपथ है । इसके अध्ययन से वेदों को समझने की दृष्टि मिलती है । शतपथ से वेद और लोक दोनों का सामञ्जस्य बनता है । ऋषिलोग जहाँ वेद के रहस्य को साक्षात् करते हैं वहीं पर लोक के प्रति करुणा से ओत-प्रोत होते हैं । वे लोकमानस को समझते हुए सरल, सहज उपाय से उस रहस्य को उन तक पहुंचा कर लोकोपकार करते हैं । वे अपने ज्ञान प्रकाश से सत्कार्य की प्रेरणा और सन्मार्ग के दर्शन कराते हैं । ऋषि अपने निस्संशय ज्ञान से मनुष्य के सन्देह का निवारण करते हैं । ऐसे सन्देह जो मनुष्य को किंकर्तव्यविमूढ़ बनाते हैं उनका निवारण व निराकरण हुए बिना मनुष्य सही मार्ग पर नहीं चल सकता । ऐसे संदिग्ध स्थलों का स्पष्टीकरण इस पुस्तक में मिलता है । देव क्या हैं, वे जड़ हैं या चेतन, देवों का भोजन क्या है ? यज्ञ का वास्तविक स्वरूप क्या है ? व्यक्ति अच्छा करता हुआ भी श्रेष्ठ भावों के अभाव में असफल कैसे हो जाता है ? कर्म श्रेष्ठ ज्ञान के बिना इच्छित फल नहीं दे सकता । स्वर्ग क्या है ? स्वर्ग तक कैसे पहुंचा जाता है, विचार की शक्ति अकल्पनीय है आदि इस प्रकार के जन-जन के जीवन में सार्थकता लाने वाले प्रश्नों का समाधान शतपथ के सूत्रों में मिलता है। आदरणीय विद्वान डॉ. वेदपाल सुनीथ ने इन सूत्रों को सरल, मनोहारी शैली में श्राख्यानों से अलंकृत कर प्रस्तुत किया है । इससे जहाँ शतपथ की गम्भीरता और उपादेयता पाठक की समझ में आती है वहीं आचार्य जी के पुरुषार्थ व उनकी विषय के समझने और समझाने की योग्यता का ज्ञान भी होता है । निश्चय ही यह छोटी-सी पुस्तक पाठकों के जीवनपथ को
प्रशस्त करेगी । यही इस पुस्तक की सफलता है । पण्डितजी की लेखनी गंगोत्री बनकर वेदज्ञान की गंगा से पाठकों को आप्लावित और अल्हादित करती रहे, यही कामना है।
धर्मवीर परोपकारिणी सभा, अजमेर संयुक्तमन्त्री,
Weight | 300 kg |
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