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Aryon Ke 16 Sanskar

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जिस क्रिया से शरीर, मन और आत्मा उत्तम हो उसको संस्कार कहते हैं। संस्कार किसी वस्तु के पुराने स्वरूप को बदल कर उसे नया स्वरूप दे देता है। जैसे सुनार अशुद्ध सोने को अग्नि में तपाकर उसे शुद्ध बना देता है, वैसे ही वैदिक संस्कृति में उत्पन्न होने वाले बालक को संस्कारों की भट्टी में डालकर उसके दुर्गुणों को निकाल कर उसमें सद्गुणों को डालने का प्रयास किया जाता है, इसी प्रयत्न को संस्कार कहते हैं ।

चरक ऋषि ने कहा है – ‘संस्कारो हि गुणान्तराधानमुच्यते’ अर्थात् पहले से विद्यमान दुर्गुणों को हटाकर उनकी जगह सद्गुणों का आधान करने को संस्कार कहते हैं।’ बालक का जब जन्म होता है तब वह दो प्रकार के संस्कार अपने साथ लेकर आता है। एक प्रकार के संस्कार तो वे हैं, जिन्हें वह जन्म-जन्मान्तरों से अपने साथ लाता है, दूसरे प्रकार के संस्कार वे हैं, जिन्हें वह अपने मातापिता के संस्कारों के रूप में वंश परम्परा से प्राप्त करता है । ये अच्छे भी हो सकते हैं, बुरे भी हो सकते हैं। संस्कारों द्वारा मानव के नव निर्माण की योजना वह योजना है, जिसमें बालक को ऐसे वातावरण से घेर दिया जाए, जिसमें अच्छे संस्कारों को पनपने का अवसर प्राप्त हो और बुरे संस्कारों को वे चाहे पिछले जन्मों के हों, चाहे माता-पिता से प्राप्त हुए हों, चाहे इस जन्म में पड़ने वाले हों, उन्हें निर्बीज कर दिया जाए। हमारी अन्य योजनाएँ भौतिक योजनाएँ होती हैं, पर संस्कारों की योजना आध्यात्मिक योजना है। वैदिक संस्कृति का मूल ध्येय उस मानव का आध्यात्मिक निर्माण करना है जिसके लिए बांध बांधे जाते हैं, नहरें खोदी जाती हैं ।

जो देश उन्नति करने लगता है, वह योजनाओं का तांता सा बांध देता है, कोई पंचवर्षीय योजनाएं बनाता है, कोई दस वर्षीय । परन्तु क्योंकि हमारी दृष्टि आधिभौतिक जगत् तक सीमित है, इसलिए हमारी योजनाओं का उद्देश्य बांध बांधना, नहरें खोदना, सड़कें बनाना तथा रेलें बिछा देना मात्र जाता है।

Weight 200 kg

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