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Dayanand Vedbhshy Bhavarth Prakash

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समर्पण-शोध-संस्थान के उद्देश्यों में जहाँ वैदिक वाङ्मय के शोध के क्षेत्र में दुरूह असमाहित स्थलों का अध्ययन समाविष्ट है, वहाँ विद्वज्जनों द्वारा लिखे गये अनुपम शोध-प्रबन्धों का प्रकाशन भी समाहित है। संस्थान प्रतिवर्ष एक न एक अनुपम रचना का प्रकाशन कर, जनता जनार्दन के कर-कमलों में समर्पित करता आ रहा है। संस्थान का विश्वास है, कि यदि आर्य जनता एवं दानी महानुभावों का सहयोग बना रहा, तो प्रकाशन का क्रम आगे भी अबाध गति से चलता रहेगा। संस्थान सदैव इस खोज में रहा है, कि किसी विद्वान् की अभिनव रचना प्रकाशन के अभाव में हस्तलेखों में ही पड़ी न रह जाये। ऐसी ही एक अनुपम रचना गत वर्ष संस्थान को उपलब्ध हो गई, जिसके प्रकाशन का श्रेय उसे प्राप्त हुआ । पाठकवृन्द को यह जानने की उत्सुकता होगी कि आखिर ऐसी कौन सी रचना है, जिसका प्रकाशन कर संस्थान अपने को गौरवान्वित अनुभव कर रहा है। उस ग्रंथ का नाम क्या है? उसका यशस्वी लेखक कौन है? तो सुनिये उस अभिनव रचना का नाम ‘दयानन्दवेदभाष्य-भावार्थप्रकाश’ है और उसके यशस्वी लेखक का नाम पं सत्यानन्द वेदवागीश है ।

भावार्थप्रकाश नाम सुनकर सम्भवतः पाठक के मन में यह शंका उठे, कि क्या इस पर इतना तूल था, इसमें क्या अनुपमता है, अभिनवता है । सम्पूर्ण यजुर्वेद – मन्त्रों का भावार्थप्रकाश तो बहुत पहले ही से “वैदिक भक्ति साधनाश्रम” रोहतक वालों ने प्रकाशित करवा रखा है। इसमें क्या नवीनता है, भावार्थप्रकाश नाम सुनने पर, साधारणतया श्रोता पर यह प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक ही है, परन्तु जब इसका पूर्ण परिचय प्राप्त होगा तो वह भी इसे अनुपम, अभिनव, अद्वितीय, अपूर्व आदि विशेषणों से याद करेगा और सहसा मुख से निकलेगा, वाह! क्या खूब! चित्रम्! आश्चर्य!

सामान्य जन की तो बात ही क्या प्रथम बार तो मुझे भी यह शंका हुई, कि अन्ततः भावार्थप्रकाश की विशेषता क्या है? अब जब भी अवसर मिलेगा तो मैं स्वयं विद्वान् लेखक से मिलकर अपनी शंका निवृत्त करूंगा। मैं अवसर की तलाश में था कि कब अवसर मिले और मैं अपनी शंका की निवृत्ति करूं । वह भी समय आ गया सन् १९९२ का वर्ष शरद् पूर्णिमा का दिन जयपुर के रावत होटल के स्वामी श्री चन्द्रप्रकाश जी देवड़ा का जन्मदिवस, श्री देवड़ा जी प्रतिवर्ष अपने जन्मदिवस पर वेद-पारायण यज्ञ का आयोजन करते हैं, जिसमें श्री पं सत्यानन्द जी भी पधारे थे। मैंने देखा कि जैसे ही यज्ञ से, भोजन से निवृत्त हुए कि रावत होटल के प्राङ्गण में वृक्ष की घनी छाया में लिखने बैठ जाते, मुझसे न रहा गया और जिज्ञासावश पूछ बैठा – कि भ्राता जी! आप किस ग्रन्थ का निर्माण कर रहे हैं—तब उन्होंने भावार्थप्रकाश लिखने का पूर्ण विवरण सुनाया तो मैं सहया हर्षित हो उठा। विद्वान् लेखक ने समझाते हुए कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ७५९५ मन्त्रों पर भाष्य लिखा है। मैंने भाष्यगत-भावार्थों का संकलन आरम्भ किया हुआ है। आप देख रहे हैं कि प्रत्येक मन्त्र को, मन्त्र के संस्कृत भावार्थ को, पृथक्-पृथक् चिटों पर लिखा जा रहा है। समस्त चिट लिखे जाने के पश्चात् इनका विषयवार वर्गीकरण कर दूंगा, उनसे जो भावार्थप्रकाश ग्रन्थ तैयार होगा उसकी अपनी ही विशेषता होगी। वेद का अध्येता एवं शोधकर्त्ता जिस भी विषय पर प्रमाण चाहेगा, तो उसे तत्सम्बद्ध सभी वेदमन्त्र एवं भावार्थ एक ही स्थान पर संगृहीत मिल जायेंगे। यदि किसी को ईश्वर-विषयक प्रमाणों की आवश्यकता होगी तो उसे इधर-उधर भटकने एवं पन्ने पलटने की आवश्यकता न होगी। फिर चाहे कोई विषय हो । शिक्षा शास्त्र का, समाज-शास्त्र का, राजनीति शास्त्र का, योग- शास्त्र का व्यवहार शास्त्र का एवं आचारअनाचार, बन्ध- मोक्ष का कोई भी विषय हो, उसे तत् तत् प्रकरण में वेद-प्रमाण एवं भावार्थ मिल जायेगा। मैंने विद्वद्वर्य श्री पं० सत्यानन्द जी से यह पूछा, आपने विषयों के वर्गीकरण का आधार क्या माना? तो आप सहसा बोल उठे इसके लिए मुझे कोई कठिनाई नहीं हुई, मैंने तो महर्षि दयानन्द जी के प्रदर्शित पथ का अवलम्बन करना श्रेयस्कर समझा। महर्षि दयानन्द ने अपने अमरग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में तत् तत् विषय को समुल्लास नाम दिया है

Weight 2500 kg

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