Bhramvidya Rahasaya
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यह आत्मज्ञान निश्चय ही सत्य के द्वारा, ज्ञान के द्वारा, संयम के द्वारा प्राप्त होता है। यद्यपि परमात्मा शरीर के भीतर अर्थात हृदय में ज्योति स्वरूप तथा परम विशुद्ध रूप से विराजमान है। उसका दर्शन वे यती जन ही करते हैं जिनके दोष क्षीण हो गए हैं। भाव यह है कि आत्मा को ढूँढने बाहर नहीं भटकना है। जो अंतर्मुख होकर साधना करता है ऐसा साधक उसका दर्शन अपने भीतर कर लेता है ।
आत्मा का दर्शन साधना से सुलभ होता है, केवल शास्त्र – ज्ञान से नहीं। जीवन में सत्य का पालन, संयम का पालन तथा यथार्थ विवेक का आश्रय लेकर वह सुलभता से प्राप्त हो जाता है।
ऋषि घोषणा करते हैं कि हमको जीवन में सत्य का आश्रय लेना चाहिए। विजय सदैव सत्य की ही होती है। देवयान मार्ग सत्य से ही भरा पड़ा है। सत्य के मार्ग से ही ऋषिगण सत्य के परम निधान ब्रह्मलोक को प्राप्त कर लेते हैं।
ब्रह्म के साक्षात्कार तथा ब्रह्मानंद की शाश्वत प्राप्ति के लिए जीवन में सत्य का पालन, सत्य परमात्मा का आश्रय, असत्य रूप संसार का त्याग परमावश्यक है।
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