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Vedo Mein Vigyan

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वेदों को परमेश्वर की अमर वाणी माना जाता है, लेकिन कई मत और मजहब ऐसा मानते हैं कि उनकी अपनी किताब ही ईश्वरीय ग्रंथ हैं, लेकिन इसका निर्णय कैसे हो ? केवल विश्वास के आधार पर यह संभव नहीं। विज्ञान, तर्क और प्रयोगों के आधार ही किसी भी सिद्धांतों की प्रामाणिकता सिद्ध हो सकती है और वेदों में विज्ञान की बातों, तथ्यों और सिद्धांतों की प्रामाणिकता के लिए तर्क, विज्ञान और प्रयोगों का ही सहारा लिया जा सकता है। भारत में विज्ञान प्राचीन काल से रहा है, लेकिन पराधीनता के समय विज्ञान के स्थान पर लोग रूढ़िवादिता की ओर चले, जो घोर संकट काल सिद्ध हुआ ।

हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। रामायण और महाभारत काल में भी विज्ञान अपनी उन्नति के शिखर पर था, लेकिन महाभारत के युद्ध के बाद जन संहारक हथियारों और वैज्ञानिक उपकरणों को नष्ट कर दिया गया था। लेकिन कालांतर में भारत में विज्ञान पुनः उन्नत होना शुरू हुआ। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है ।

आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चंद्र बसु, प्रफुल्ल चंद्र राय, सी. वी. रमन, सत्येंद्रनाथ बोस, मेघनाथ साहा, प्रशांतचंद्र महाललोबिस, श्रीनिवास रामानुजम, हरगोविंद खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। लेकिन कितनी आश्चर्य की बात है कि जो भी सिद्धांत खोजे जाते हैं वे सब वेदों में मिल जाते हैं।

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