Pank se Pankaj
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महर्षि वाल्मीकि हिन्दू जीवन परम्परा के देदीप्यमान प्रकाश पुञ्ज हैं वैदिक साहित्य की परम्परागत लीक से हटकर, उस समय की जन-सामान्य की संस्कृत भाषा में, नये कथ्य, नयी भावभूमि तथा नये छन्द (अनुष्टुप ) में लौकिक काव्य का प्रथम प्रबंध-काव्य ‘रामायण’ लिखने के कारण वाल्मीकि आदि कवि कहलाये और अनुसंधान, त्याग व तपस्या के कारण उन्होंने विश्व के एकमात्र ब्रह्मऋषि होने का गौरव हासिल किया।
उनकी अमर कृति ‘रामायण’ के बारे में हृदय से बस यही उद्गार निकल पड़ते हैं:
सदूणाणापि निर्दोषा सखरापि च कोमला ।
नमस्तस्मै कृता येन रम्या रामायणी कथा ||
अर्थात् जिसमें दूषण राक्षस का वर्णन है, किन्तु स्वयं साहित्य के दोषों
से रहित है; जिसमें खर नामक राक्षस का वर्णन है, किन्तु जो अत्यंत कोमल है। ‘रामायण’ की इस प्रकार की सुंदर कथा की रचना जिस वाल्मीकि ने की हैं, मैं उसे नमन करता हूँ ।
‘रामायण’ की अमर गाथा आज किसी-न-किसी रूप में विश्व के कोने -कोने में मानव का मार्गदर्शन कर रही है ।
उन्होंने ‘रामायण’ के माध्यम से आर्य संस्कृति की समृद्ध परंपरा को प्रवहमान बनाकर विश्व की भावी पीढ़ी तथा मानवता का पथ प्रदर्शन किया। ‘रामायण’ में वर्णित राम जैसा आदर्श चरित विश्व साहित्य में और कोई नहीं मिलता। श्रीराम का मर्यादापुरुषोत्तम आदर्श चरित अपने आपमें अनुपम और अनुकरणीय है। महर्षि ने मानवता के लिए मर्यादा यह एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया है कि न केवल श्रीराम ही पुरुषोत्तम हुए, बल्कि उसके पालन से सृष्टि का हर व्यक्ति पुरुष से पुरुषोत्तम हो सकता है।
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