Vidur Neeti विदुर नीति
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नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र पर्यायवाची शब्द हैं । वैदिक परिभाषा में ‘धर्म’ शब्द का अर्थ कर्त्तव्य है, अतः धर्मशास्त्र या नीतिशास्त्र में चारों वर्गों के कर्त्तव्य और राजनीति का सविस्तर वर्णन किया गया है । महाभारत भारतीय साहित्य में बेजोड़ ग्रन्थ है। महर्षि व्यास की घोषणा हैधर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च पुरुषर्षभ । यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित् ॥ –महा० आदि० ६२/५३ भरतश्रेष्ठ ! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सम्बन्ध में जो बात इस ग्रन्थ में है, वही अन्यत्र भी है । जो बात इसमें नहीं है, वह अन्यत्र भी नहीं है । महाभारत में प्रसंगवश अनेक नीतिशास्त्रकारों की नीतियों का संग्रह उपलब्ध होता है | इनमें तप और स्वाध्यायनिरत नारद, कूटनीतिज्ञ कणिक और महात्मा विदुर के नीतिशास्त्र प्रसिद्ध हैं । इन सबमें महात्मा विदुर का धृतराष्ट्र के प्रति किया गया उपदेश अत्यन्त मार्मिक और अनूठा है । हो भी क्यों न ? स्वयं विदुरजी महाबुद्धिमान्, नीतिज्ञ, विद्वान् और सदाचारी थे । वे निर्भीक और सत्यवादी भी थे । इसमें राजनीति के मूल तथा गहन तत्त्वों का वर्णन और विवेचन तो है ही, साथ ही चरित्र का उत्थान करनेवाले नैतिक उपदेशों का भी प्रवचन है । इसी दृष्टि से महान् शिक्षाशास्त्री महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ‘विदुरनीति:’ के पठन-पाठन का विशेष विधान किया है । आज के भ्रष्ट राज्याधिकारियों और देश के भावी कर्णधार विद्यार्थियों को इस ग्रन्थ पर गहन चिन्तन और मनन करना चाहिए तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकाररूप पाँच शत्रुओं पर विजय पानी चाहिए ।
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