Satyarth Prakash सत्यार्थ प्रकाश
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महर्षि दयानन्द के मन्तव्यों व सिद्धान्तों का एक आदर्श ध्वजवाहक बनना है तो हमें सत्यार्थप्रकाश का प्रचार-प्रसार करना ही होगा, इसके अतिरिक्त दूसरा विकल्प है भी नहीं। सत्यार्थप्रकाश का जैसा नाम है वैसा ही काम है। परमेश्वर सत्य है तो प्रस्तुत ग्रन्थ सत्य का प्रकाश है।
सत्यार्थप्रकाश को अनेक विशेषताओं की निधि, आर्षग्रन्थों का निष्कर्ष, ऋषि मुनियों के मन्तव्यों का प्रतिपादन, वेदादिशास्त्रों को समझने की कुञ्जी, आर्यजाति का क्रान्तिकारी व धर्मग्रन्थ यूँ ही नहीं कहा जाता, यह तो सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण की अनमोल निधि है। मानव कल्याण से ही विश्व कल्याण सम्भव है और इसके लिए सत्यार्थप्रकाश से बढ़कर दूसरा कोई धर्मग्रन्थ नहीं हो सकता ।
यूँ तो सत्यार्थप्रकाश को लाखों करोड़ों लोगों ने पढ़ा है, प्रकाशकों ने इसे छापा है, पाठकों ने इसे खरीदा है, लेकिन एक पाठक पं० गुरुदत्त विद्यार्थी सरीखे विद्वान् के विचार सत्यार्थप्रकाश की महत्ता को बताने के लिए उपयुक्त व पर्याप्त हैं। उन्होंने कहा, “सत्यार्थप्रकाश की एक प्रति चन्द आने में मिल जाती है पर यदि इसका मूल्य अधिक होता तो मैं अपनी सारी सम्पत्ति बेचकर भी इसे खरीदता । मुझे यह ग्रन्थ इतना प्रिय है कि इसे खरीदने के लिए गले में झोली डालकर चन्दा मांगने के लिए भी तैयार हूँ।”
सत्यार्थप्रकाश जैसे अनमोल ग्रन्थरत्न का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार होते यह भी आवश्यक है कि इसका प्रकाशन भी अधिक से अधिक हो । आध्यात्मिक शोष संस्थान का सत्प्रयास भी यही है। मेरे दादा जी गोविन्दराम जी ने सत्यार्थप्रकाश का प्रथ निजि प्रकाशन सर्वप्रथम १९२५ ई० में कलकत्ता से किया था। उसके बाद वह दिल्ल में वैदिक प्रकाश के कार्य में लग गये। दादा जी के बाद मेरे पिता जी श्री विजय कुम जी ने सत्यार्थप्रकाश के अलग-अलग रूपों में कई संस्करण दिये और वैदिक साहित का अति उत्तम प्रकाशन भी किया। पूज्य पिता जी की स्मृति व वैदिक साहित्य के प्रकाशन के सङ्कल्प में यह हमारा पाँचवाँ पुष्प है।
प्रस्तुत संस्करण परोपकारी सभा के वर्तमान संस्करण की ही प्रतिलिपि है जिसका सुसम्पादन आचार्य विरजानन्द दैवकरणि व कई अन्य विद्वानों के परामर्श से हुआ है। इसके लिए आध्यात्मिक शोध संस्थान इन विद्वानों एवं परोपकारी सभा का आभार प्रकट करता है। मैं श्री रमेशकुमार जी मल्होत्रा का आभरी हूँ जिन्होंने इस संस्करण को छापने का वातावरण बनाया तथा श्री महेन्द्रसिंह आर्य को भी धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने कम्प्यूरीकृत विधि से सौन्दर्य रूप दिया।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आर्य जनता एवं विद्वद्गण हमें प्रोत्साहन देकर अनुग्रहीत करेंगे । आर्य
-अनिल कुमार
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