Aapastam Shtrautsutram Vol. 1-3 आपस्तं श्रौतसूत्रम् खंड। 1-3
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आपस्तम्ब श्रौतसूत्र का यद्यपि कृष्णयजुर्वेदीय श्रौतसूत्रों में क्रमश: पारस्परिक तृतीय स्थान है किन्तु सम्प्रति व्यवहार में सर्वोपरि है। एक प्रकार से अघोषित रूप से यह कृष्णयजुर्वेदीय सभी शाखाओं में अपनाया जा चुका है। सम्पूर्ण आपस्तम्बकल्पसूत्र में कुल तीस प्रश्न हैं जिनमें से अन्त वाले छ: प्रश्नों में क्रमशः गृह्यसूत्रीय मन्त्रपाठ, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र हैं। इस प्रकार आपस्तम्बकल्पसूत्र के प्रारम्भिक चौबीस प्रश्नों में श्रौतसूत्रविषयक विधान किया गया है। श्रौतसूत्र का प्रत्येक प्रश्न कण्डिकाओं में विभक्त हैं। इन कण्डिकाओं में सूत्र है । इस श्रौतसूत्र में कुल ५८८ कण्डिकाएँ और ७५९२ सूत्र हैं ।
सूत्ररूप में उपनिबद्ध तथा यज्ञविषयक गूढ़ तथ्यों का विवेचन होने के कारण इसका सम्यग् अवबोध होना कठिन तथा दुरुह है। अनेक नये शब्दों के प्रयोग से इसका सम्यग् ज्ञान और कठिन हो जाता है। जैसे-वाचाकर्मीणम् = वाक्साध्य कर्म, स्त्रिव्यञ्जनानि = स्त्रीत्वद्योतक स्तनादि चिह्न इत्यादि । अपाणिनीय प्रयोग और अप्रचलित शब्दों के प्रयोग से ग्रन्थ की दुरुहता और बढ़ जाती है । ऐसे ग्रन्थ पर भाष्यसम्पत्ति भी ऊन है । जो भाष्य उपलब्ध हैं, वे भी अपूर्ण होने के कारण ग्रन्थ के तथ्य को समझने के लिए पूर्णोपयोगी नहीं हैं । इस ग्रन्थ पर धूर्तस्वामी का अपूर्ण भाष्य प्रकाशित है। आरम्भिक पन्द्रह प्रश्नों पर भट्टरुद्रदत्त की वृत्ति प्रकाशित है जो इस संस्करण में योजित की गयी है। इस श्रौतसूत्र के कतिपय प्रश्नों पर चौण्ड्याचार्य की टीका तथा कुछ प्रश्नों पर कपर्दिस्वामी के भाष्य की उपलब्धता है किन्तु ये दोनों भाष्य भी अप्रकाशित हैं। श्रौतयागों पर ‘आपस्तम्ब दर्शपूर्णमासेष्टि प्रयोग’ नामक एक ग्रन्थ आनन्दाश्रम पूणे से प्रकाशित है ।
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