Tretvad ka Udbhav aur Vikas त्रैतवाद का उद्भव और विकास
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अनादि काल से यह निखिल विश्व मानव जीवन के लिए एक प्रश्नचिह्न बना हुआ है। इसीके रहस्यों की खोज के लिए अनेक भूषियों, महर्षियों, विद्वानों और मनीषियों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। इस खोज के प्रमुख आधार चेतन और अचेतन तत्व हो रहे हैं। एक तरफ इन्हीं अन्वेषणों के आधार पर भौतिकवादी विज्ञान आश्वयंजनक अन्वेषण कर रहा है। दूसरी तरफ अभ्यात्मवादी विज्ञान की खोजें भी कुछ कम आश्चर्यजनक नहीं हैं। अनेक दार्शनिक विचारधारायें मनुष्य के उर्वर मक्तिष्क की उपज हैं, उनमें परस्पर मतभेद का होना स्वाभाविक है। यह भी निश्चित है कि दार्शनिक क्षेत्र में जितनी गहन साधना भारतवर्ष में हुई है उतनी अन्यत्र नहीं हो सकी है। मननशील प्राणी मनुष्य के विचार स्वातन्य का परिणाम ही दार्शनिक विचारों की भिन्नता का कारण होता है। विश्व के सभी दार्शनिकों में चिन्तन साम्य नहीं है। भारतवर्ष की दार्शनिक विचारधारायें भी परस्पर के खण्डन मण्डन में प्रवृत्त रही हैं। पुनरपि यह तथ्य तो निर्विवाद है कि सम्पूर्ण विश्व के अन्वेषकों के चिन्तनाधार ईश्वर, जीवात्मा या जड़ तत्व .
मेरी जिज्ञासु प्रवृत्ति प्रारम्भ से ही इन रहस्यों के विषय में चिन्तनोन्मुख रही है और इसी प्रवृत्ति ने दार्शनिक विचारधाराओं के तुलनात्मक अध्ययन की तरफ मुझे प्रवृत्त किया है। मैं अभी भी एक विद्यार्थी हूँ और जीवन भर विद्यार्थी बने रहने की ही प्रवल इच्छा है। इस ज्ञान की यात्रा में मैं अभी से क्या कहूँ कि क्या सही है क्या सही नहीं है। परन्तु इतना कह सकता हूँ कि इन तत्वों की खोज में मुझे स्वान्तः सुख और आत्मसन्तुष्टि अवश्य मिली है। श्रुति व्यसन परितृप्ति के निमित्त ही मैंने अपने शोध का विषय ‘त्रैतवाद’ रखा। उस पर भी इसके उद्भव और विकास का अन्वेषण असाध्य नहीं तो दुःसाध्य अवश्य था, क्योंकि इस विषय से सम्बन्धित विशाल साहित्य का एकत्र न मिला ही सबसे अधिक कठिन कार्य था। बेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, महाभारत, गीता, पुराण, स्मृति, षड्दर्शनादि जो दार्शनिक मूल स्रोत ग्रन्थ हैं उन सभी में एक अविछिन्न दार्शनिक परम्परा का समन्वयात्मक दृष्टिकोण विद्यमान है। उसी समन्धयातक दृष्टिकोण को इस शोध प्रबन्ध में दिखाने का यथाशक्ति प्रयत्न किया गया है। उस समन्वय के आधारभूत तत्व ईश्वर, जीवात्मा और प्रकृति ये तीनों ही प्रमुख रूप से रहे हैं । त्रैतदर्शन के भो ये तीनों ही आधार तत्व हैं। इस शोध प्रबन्ध में त्रं तदर्शन की विचारधारा का वेदों से उद्भव बतलाकर षड्दर्शनों तक मूलस्रोत ग्रन्थों की श्रंतवाद सम्बन्धी कड़ियों को जोड़ने का प्रयास किया गया है। इन सभी मूलप्रस्थों में से प्रामाणिक मूल स्थलों का उल्लेख तथा तत्सम्बन्धी भाष्यों का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत करके इसके विकासक्रम की शृंखला तैयार की गई है।
Weight | 600 kg |
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