Taittriya Aranyaka Sayana Bhashya Set 2 Volumes’. तैत्तिरीय आरण्यक सायण भाष्य सेट 2 खंड’
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वेद और आश्रम व्यवस्था का घनिष्ठ सम्बन्ध है। वेदों का विभाजन चार भागों में हुआ है— संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् | संहिता में मन्त्रों का सङ्कलन है। ब्राह्मण उन मन्त्रों के व्याख्याग्रन्थ हैं। इसमें मन्त्रों की विभिन्न दृष्टियों से व्याख्या की गयी है और याज्ञिक दृष्टि से उनका विनियोग बतलाया गया है। इस प्रकार ब्राह्मणग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान हैं। आरण्यकग्रन्थ ब्राह्मण और उपनिषद् के बीच की कड़ी हैं। जहाँ ब्राह्मणग्रन्थों में याज्ञिक विधिविधान हैं वहीं उपनिषद् में आत्मा और परमात्माविषयक ज्ञान का प्रतिपादन हुआ है। आरण्यकग्रन्थों में ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णित याज्ञिक प्रक्रिया इत्यादि का उपनिषद् ग्रन्थों में प्रतिपादित आत्मा और परमात्मा से सामञ्जस्य उपस्थापित किया गया है । इस प्रकार ये ब्राह्मणों और उपनिषदों का समायोजन करते हैं । ब्राह्मण कर्म के प्रतिपादक ग्रन्थ है और उपनिषद् ज्ञान के । आरण्यक कर्म और ज्ञान दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करता है । इस प्रकार आरण्यक जितना अपने पूर्ववर्ती ब्राह्मणग्रन्थ से सम्बद्ध है उतना ही परवर्ती उपनिषद् से । आरण्यक ब्राह्मण ग्रन्थों के परिशिष्टभाग अथवा पूरक हैं और प्राय: उपनिषद् इन्हीं में समाहित हैं।
वेदों के समान ही मानवजीवन को भी सौ वर्ष का मानकर ऋषियों ने उसे चार भागों में विभक्त किया था, जिसे आश्रमव्यवस्था के नाम से जाना जाता है । वेदों के समान आश्रम भी चार हैं—ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम | ब्रह्मचर्याश्रम शिक्षाप्राप्ति का आश्रम था । इसमें व्यक्ति उपयुक्त शिक्षा प्राप्त करने के अनन्तर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करके शालीन, अभ्युन्नत और नियमित जीवन व्यतीत करता हुआ पुत्रोत्पत्ति द्वारा सृष्टिप्रक्रिया का नैरन्तर्य बनाये रखता था। गृहस्थाश्रम में अपने साथ-साथ भार्या, पुत्र, पुत्री, मातापिता इत्यादि का पालन करते हुए सामाजिक दायित्वों की पूर्ति करता था । साथ ही परलोक के अभ्युत्थान के लिए याज्ञिककर्म, नित्य, नौमित्तिक कर्म इत्यादि भी करने पड़ते थे।
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