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Vyasa shiksha व्यास शिक्षा

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शिक्षा – वेद से सम्बन्धित ध्वनिविषयक विशिष्ट ज्ञान को वैदिक ध्वनिविज्ञान कहा जाता है। इस प्रकार जिस शास्त्र में वैदिक ध्वनियों से सम्बन्धित विशेष ज्ञान उपनिबद्ध होता है वह शास्त्र वैदिक ध्वनिविज्ञान है। उस शास्त्र में वेद में प्रयुक्त ध्वनियों की संख्या, उनके स्वरूप, उनकी उच्चारण प्रक्रिया, स्थलविशेष पर उनके उच्चारण में होने वाले वैशिष्ट्य इत्यादि विषयों का सम्यकप्रकार से विवेचन किया गया है। वेदों के मूल स्वरूप की सुरक्षा के लिए वैदिकाचार्यों ने छः वेदाङ्गों का प्रणयन किया है – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त और ज्योतिष |

इनमें प्रथम स्थानीय शिक्षा नामक वेदाङ्ग वैदिक ध्वनिविज्ञान का आदि शास्त्र है क्योंकि वहाँ वेद में उपलब्ध ध्वनियों का विविध प्रकार से विवेचन उपनिबद्ध हुआ है। शिक्षा नामक वेदाङ्ग के साथ ही साथ प्रातिशाख्य शास्त्र का भी वैदिक ध्वनिविज्ञान के क्षेत्र में महनीय योगदान है क्योंकि वहाँ भी वेदों के चरणविशेष की शाखाओं में जो संहिताओं के मन्त्र हैं उनमें प्रयुक्त ध्वनियों का वैज्ञानिक विवेचन प्राप्त होता है। इन शिक्षाग्रन्थों और प्रातिशाख्य ग्रन्थों के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि इनमें प्रतिपादित तथ्य ध्वनिविज्ञान के क्षेत्र में वैदिकाचार्यों द्वारा उनके द्वारा सूक्ष्म दृष्टि से उन ध्वनियों के विषय में चिन्तन के परिणाम हैं । वेद विश्वजगत् के निखिल वाङ्मय में उपलब्ध सर्वप्राचीन ग्रन्थ है अतः वहाँ प्रयुक्त भाषा भी विश्ववाङ्मय में सर्वप्राचीन भाषा सिद्ध होती है । इस प्रकार इस विषय में किसी को विप्रतिपत्ति नहीं होनी चाहिए ।

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